देव स्तुति-2 वीतराग सर्वज्ञ हितंकर भविजन की अब पूरो आस | ज्ञान भानु का उदय करो मम मिथ्यातम का होय विनाश ॥ जीवों की हम करुणा पाले, झूठ वचन नहीं कहें कदा | परधन कबहूँ न हरहूँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा ॥ तृष्णा लोभ बढ़े न हमारा, तोष सुधा निधि पिया करें | श्री जिनधर्म हमारा प्यारा उसकी सेवा किया करें | दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार | मेल-मिलाप बढ़ावे हम सब, धर्मोन्नति का करें प्रचार ॥ सुख-दुख में हम समता धारे, रहे अचल जिमि सदा अटल | न्याय मार्ग का लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतम बल ॥ अष्ट करम जो दुःख हेतु हैं, उनके क्षय का करें उपाय | नाम आपका जपें निरन्तर, विघ्न शोक सब ही टल जाय ॥ आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप मैल नहीं चढ़ें कदा | विद्या की हो उन्नति हममें, धर्म ज्ञान हूँ बढ़े सदा | हाथ जोड़कर शीश नवावें, तुमको भविजन खड़े-खड़े | य सब पूरो आश हमारी चरण-शरण में आन पड़े ॥ |