पार्श्वनाथ स्तोत्र नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं, शतेन्द्रं सु पूजैं भजैं नाय-शीशं| मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमें जोड़ि हाथं, नमो देव-देवं सदा पार्श्वनाथं॥ गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुड़ावे, महा-आगतैं नागतैं तू बचावे| महावीरतैं युद्ध में तू जितावे, महा-रोगचैं बंधतैं तू छुड़ावे॥ दुःखी-दुःखहर्ता सुखी-सुखकर्ता, सदा सेवकों को महानंद-भर्ता| हरे यक्ष-राक्षस भूतं पिशाचं, विषम डाकिनी विघ्न के भय अवाचं॥ दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने, अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने| महासंकटों से निकारे विधाता, सबे संपदा सर्व को देहि दाता॥ महाचोर को वज्र को भय निवारे, महापौन के पुंजतैं तू उबारे| महाक्रोध की अग्नि को मेघघारा, महालोभ शैलेश को वज्र मारा॥ महामोह अंधेर को ज्ञान-भानं, महा-कर्म-कांतार को द्यौ प्रधानं| किये नाग-नागिन अधोलोक स्वामी, हर्यो मान तू दैत्य को हो अकामी॥ तुही कल्पवृक्षं तुही कामधेनं, तुही दिव्य-चिंतामणी नाग एनं| पशु-नर्क के दुःखतैं तू छुड़ावै, महास्वर्ग में मुक्ति में तू बसावै॥ करे लोह को हेम-पाषाण नामी, रटे ना सो क्यों न हो मोक्षगामी| करै सेव ताकी करैं देव सेवा, सुने बैन सोही लहे ज्ञान मेवा॥ जपै जाप ताको नहीं पाप लागे, धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे| बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे, तुम्हारी कृपातैं सरैं काम मेरे॥ (दोहा) गणधर इन्द्र न कर सके, तुम विनती भगवान्| द्यानत प्रीति निहार के, कीजे आप समान॥ |