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श्री रविव्रत पूजन

श्री रविव्रत पूजन

यह भविजन हितकार, सु रविव्रत जिन कही |

करहु   भव्यजन   सर्व,   सुमन   देकें   सही ॥

पूजों पार्श्‍व   जिनेन्द्र, त्रियोग लगायके |

मिटैं सकल सन्ताप, मिलै निधि आयके ॥

मतिसागर इक सेठ, सु ग्रन्थन में कहो |

उनने भी यह पूजा कर आनन्द लहो ॥

तातें रविव्रत सार, सो भविजन कीजिये |

सुख सम्पति संतान, अतुल निधि लीजिये ॥

प्रणमों पार्श्‍व जिनेश को, हाथजोड़ सिर नाय |

परभव सुख के कारने, पूजा करुँ बनाय ॥

एतवार व्रत के दिना, ये ही पूजन ठान |

ताङ्गल सम्पत्ति को लहैं, निश्‍चय लीजे मान ॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम् |

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

उज्ज्वल जल भरकें अतिलायो, रतन कटोरन मॉंहीं |

धार देत अति हर्ष बढ़ावत, जन्म जरा मिट जाहीं ॥

पारसनाथ जिनेश्‍वर पूजो, रविव्रत के दिन भाई |

सुख सम्पत्ति बहु होय तुरतहीं, आनन्द मंगल दाई ॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा|

मलयागिर केशर अति सुन्दर,कुंकुम रंग बनाई |

धारदेत जिन चरनन आगे, भव आताप नशाई ॥पारस.॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा|

मोतीसम अति उज्ज्वल तंदुल,लावो नीर पखारो |    

अक्षयपदके हेतु भावसों, श्रीजिनवर ढिग धारो ॥पारस.॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा |

बेला अरु मचकुंद चमेली, पारिजात के ल्यावो |

चुनचुन श्रीजिन अग्र चढ़ाऊँ, मनवांछित फल पावो ॥पारस॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पाणि निर्वपामीति स्वाहा |

बावर ङ्गैनी गुजिया आदिक, घृत में लेत पकाई |

कंचन   थार मनोहर भरके, चरनन देत चढ़ाई ॥पारस.॥                                                        

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा |

मणिमय दीप रतनमय लेकर, जगमग जोति जगाई |

जिनके आगे आरति करके,मोहतिमिर नशजाई ॥पारस.॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा |

चूरन कर मलयागिर चंदन, धूप दशांग बनाई |

तट पावक में खेय भाव सों, कर्मनाश हो जाई ॥पारस. ॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा |

श्रीङ्गल आदि बदाम सुपारी, भांति भांति के लावो |

श्रीजिनचरन चढ़ाय हरषकर,तातें शिवफल पावो ॥

पारसनाथ जिनेश्‍वर पूजो, रविव्रत के दिन भाई |

सुख सम्पत्ति बहु होय तुरतहीं, आनन्द मंगल दाई ॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा |

जल गंधादिक अष्ट द्रव्य ले, अर्घ बनावो भाई |

नाचत गावत हर्षभाव सों, कंचन थार भराई ॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा |

गीतिका

मन वचन काय विशुद्ध करके, पार्श्‍वनाथ सु पूजिये,

जल आदि अर्घ बनाय भविजन, भक्तिवंत सु हूजिये |

पूज्य पारसनाथ जिनवर, सकल सुखदातार जी,

जे करत हैं नर नारि पूजा, लहत सौख्य अपार जी ॥

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा |

जयमाला

यह जग में विख्यात हैं पारसनाथ महान |

तिन गुण की जयमालिका,भाषा करुँ बखान ॥

जय जय प्रणमों श्री पार्श्‍व देव, इन्द्रादिक तिनकी करत सेव |

जय जय सु बनारस जन्म लीन, तिहुँ लोक विषैं उद्योत कीन ॥१ ॥

जय जिनके पितु श्री विश्‍वसेन,तिनके घर भये सुखचैन देन |

जय वामा देवी मात जान, तिनके उपजे पारस महान ॥२ ॥

जय तीन लोक आनन्द देन, भविजन के दाता भये ऐन |

जय जिनने प्रभु का शरण लीन,तिनकी सहाय प्रभुजी सो कीन ॥३ ॥

जय नाग नागिनी भये अधीन, प्रभु चरणन लाग रहे प्रवीन |

तज देह देवगति गये जाय, धरणेन्द्र पद्मावति पद लहाय ॥४ ॥

जय अञ्जन चोर अधम अजान,चोरी तज प्रभु को धरो ध्यान |

जय मृत्यु भये वह स्वर्ग जाय, ऋद्धी अनेक उनने सो पाय ॥५ ॥

जय मतिसागर इक सेठ जान, तिन अशुभकर्म आयो महान |

तिनके सुत थे परदेश मॉंहिं, उनसे मिलने की आश नांहिं ॥६ ॥

जय रविव्रत पूजन करी सेठ, ता ङ्गल कर सबसे भई भेंट |

जिन-जिनने प्रभु का शरण लीन,तिन ऋद्धि सिद्धि पाई नवीन ॥७ ॥

जय रविव्रत पूजा करहिं जेय, ते सौख्य अनन्तानन्त लेय |

धरणेन्द्र पद्मावति हुये सहाय,प्रभुभक्त जान तत्काल आय ॥८ ॥

पूजा विधान इह विधि रचाय, मन वचन काय तीनों लगाय |

जो भक्ति भाव जयमाल गाय,सो ही सुख सम्पति अतुल पाय ॥९॥

बाजत मृदंग बीनादि सार, गावत नाचत नाना प्रकार |

तन नन नन नन नन ताल देत,सन नन नन नन सुर भर सो लेत ॥

ताथेई थेई थेई पग धरत जाय, छम छम छम छम घुंघरू बजाय |

जे करहिं निरत इह भाँत भाँत, ते लहहिं सुक्ख शिवपुर सुजात ॥॥

दोहा - रविव्रत पूजा पार्श्‍व की, करै भविक जन जोय |

सुख सम्पति इह भव लहै, आगे सुर पद होय |

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्‍वनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा |

अडिल्ल

रविव्रत पार्श्‍व जिनेन्द्र, पूज भवि मन धरें |

भव भव के आताप, सकल छिन में टरें ॥

होय   सुरेन्द्र   नरेन्द्र ,   आदि   पदवी लहे |

सुख सम्पति सन्तान, अटल लक्ष्मी रहे ॥

ङ्गेर सर्व विधि पाय, भक्ति प्रभु अनुसरें |

नानाविध सुख भोग, बहुरि शिवतिय वरें ॥

इत्याशीर्वादः

रविव्रत जाप्य मंत्र

ॐ ह्रीं नमो भगवते चिंतामणि पार्श्‍वनाथाय सप्तङ्गण मण्डिताय श्री धरणेन्द्र पद्मावती-सहिताय मम् ऋद्धि सिद्धिं वृद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा |

 

 

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