Home | About Us | Our Mission | Downloads | Contact Us |  
| Guest | Register Now
 
SERVICES
History of Jainism
Jain Ascetics
Jain Lectures
Jain Books/Litrature
24 Jain Tirthankars
Shalaka Purush
Jain Acharyas
Puja Sangrah
Vidhan
Jinvani Sangrah
Tithi Darpan
Jain Bhajan
Jain Video
Mother's 16 Dreams
Vidhan Mandal & Yantra
Wallpapers
Jain Manuscripts
Jain Symbols
Digamber Jain Teerths
Committee
Bidding
Virginia Jain Temple
 
DOWNLOADS
Books
Chaturmas List
Jain Calendar
Choughariya
Puja Paddhati
Subscribe For Newsletter
 
 
 
 
 
पंचमेरु-पूजा

पंचमेरु-पूजा

गीता छन्द

तीर्थंकरों के न्हवन जल तैं भये तीरथ शर्मदा,

तातैं प्रदच्छन देत सुर-गन पंच मेरुन की सदा |

दो जलधि ढाई-द्वीप में सब गनत-मूल विराजहीं,

पूजौं असी जिनधाम-प्रतिमा होहि सुख, दुख भाजहीं ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:|

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

चौपाई आंचलीबद्ध

सीतल-मिष्टसुवास मिलाय, जल सौं पूजौं श्रीजिनराय |

महासुख होय देखे नाथ परम सुख होय ॥

पॉंचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमा को करों प्रनाम |

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥

ॐ ह्रीं सुदर्शन विजय अचल मन्दर विद्युन्मालि पञ्चमेरुसम्बन्धिजिन चैत्यालयस्थ-जिनबिम्बेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा |

जल केशर करपूर मिलाय, गंधसौं पूजौं श्रीजिनराय |

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यश्‍चन्दनं निर्व. स्वाहा |

अमल अखंड सुगंध सुहाय, अच्छतसौं पूजौं जिनराय |

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्योऽक्षतान् निर्व.स्वाहा |

बरन अनेक रहे महकाय, फूलन सौं पूजौं जिनराय |

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्य: पुष्पाणि निर्व. स्वाहा |

मनवांछित बहु तुरत बनाय, चरु सौं पूजौं श्रीजिनराय |

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो नैवेद्यं निर्व. स्वाहा |

तमहर उज्ज्वल ज्योति जगाय, दीप सौं पूजौं श्रीजिनराय|

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो दीपं निर्व. स्वाहा |

खेऊँ अगर अमल अधिकाय, धूप सौं पूजौं श्रीजिनराय|

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो धूपं निर्व. स्वाहा |

सुरस सुवर्ण सुगन्ध सुभाय, फल सौं पूजौं श्री जिनराय|

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्य: फलं निर्वपामीति स्वाहा |

आठ दरबमय अरघ बनाय,‘द्यानत’ पूजौं श्रीजिनराय |

महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों. ॥

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्योऽर्घं निर्वपामीति स्वाहा |

 

जयमाला

सोरठा

प्रथम सुदर्शन स्वामि, विजय अचल मन्दर कहा |

विद्युन्माली नाम, पंच मेरु जग में प्रगट ॥

बेसरी छन्द

प्रथम सुदर्शन मेरु विराजै, भद्रशाल, वन भूपर छाजै |

चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

ऊपर पंच-शतक पर सोहै, नन्दन-वन देखत मन मोहै |

चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

साढ़े बासठ सहस उँचाई, वन सुमनस शोभै अधिकाई |

चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

ऊँचा जोजन सहस-छत्तीसं, पाण्डुक-वन सोहै गिरि-सीसं |

चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

चारों मेरु समान बखाने, भूपर भद्रसाल चहुँ जाने |

चैत्यालय सोलह सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

ऊँचे पाँच शतक पर भाखे, चारों नन्दनवन अभिलाखे |

चैत्यालय सोलह सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

साढ़े पचपन सहस उतंगा, वन सौमनस चार बहुरंगा |

चैत्यालय सोलह सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

उच्च अठाइस सहस बताये, पांडुक चारों वन शुभ गाये |

चैत्यालय सोलह सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

सुर नर चारन वन्दन आवैं, सो शोभा हम किह मुख गावैं |

चैत्यालय अस्सी सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥

दोहा

पंच मेरु की आरती, पढ़े सुनै जो कोय |

‘द्यानत’ फल जानै प्रभू तुरत महासुख होय ॥ 

ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो महार्घं निर्व. स्वाहा |

 

 

 

 

OUR SERVICES