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समुच्चय चौबीसी जिनपूजन

समुच्चय चौबीसी जिनपूजन

ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पदम सुपार्श्‍व जिनराय |

चन्द पुहुप शीतल श्रेयांस नमि, वासुपूज्य पूजित सुरराय ॥

विमल अनन्त धर्म जस-उज्ज्वल, शांति कुंथु अर मल्लि मनाय |

मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्‍व प्रभु, वर्द्धमान पद पुष्प चढ़ाय ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतचतुर्विंशतितीर्थकरा: ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतचतुर्विंशतितीर्थकरा: ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ: |

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतचतुर्विंशतितीर्थकरा:! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट्|

मुनि मन सम उज्ज्वल नीर, प्रासुक गन्ध भरा |

भरि कनक - कटोरी धीर, दीनी धार धरा ॥

चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्द - कन्द सही |

पद जजत   हरत भवङ्गन्द, पावत मोक्ष - मही ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामिति स्वाहा|

गोशीर   कपूर   मिलाय,   केशर रंग   भरी |

जिन चरनन देत चढ़ाय, भव आताप हरी ॥चौ. ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्य: संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामिति स्वाहा |

   तन्दुल सित सोम समान, सुन्दर अनियारे |

   मुक्ताङ्गल की उनमान, पुञ्ज धरों प्यारे ॥चौ. ॥ 

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामिति स्वाहा |

   वर - कंज कदम्ब करण्ड, सुमन सुगन्ध भरे |  

   जिनअग्र धरों गुनमण्ड, कामकलंक हरे ॥चौ. ॥   

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा |

मन - मोहन मोदक आदि, सुन्दर सद्य बने |    

रसपूरित प्रासुक स्वाद, जजत क्षुधादि हने ॥चौ. ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामिति स्वाहा |

तम- खण्डन दीप जगाय, धारों तुम आगै |

सब तिमिर मोहक्षय जाय, ज्ञानकला जागै ॥चौ. ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामिति स्वाहा |

दशगन्ध हुताशन माँहिं, हे प्रभु ! खेवत हों | 

मिस धूम करम जर जाँहिं, तुम पद सेवत हों ॥चौ. ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामिति स्वाहा |

शुचि पक्व सरसङ्गल सार, सब ऋतु के ल्यायो |   

देखत दृग मन कों प्यार, पूजत सुख पायो ॥चौ. ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामिति स्वाहा |

जल फल आठों शुचिसार, ताको अर्घ करों |   

तुमको अरपों भवतार, भवतरि मोक्षवरों ॥चौ. ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्योऽनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामिति स्वाहा |

जयमाला

दोहा - श्रीमत तीरथनाथ पद, माथ नाय हित हेत |

       गाऊँ गुणमाला अबै अजर अमर पद देत ॥

छन्द घत्तानन्द

जय भव तमभंजन, जनमनकंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छकरा |

शिवमग परकाशक, अरिगणनाशक, चौबीसों जिनराज वरा ॥

छन्द पद्धरि

जय ऋषभदेव ऋषि-गन नमन्त,जय अजित जीत वसु अरि तुरन्त |

जय सम्भव भव-भय करत चूर, जय अभिनन्दन आनन्दपूर ॥१ ॥

जय सुमति सुमति दायक दयाल,जयपद्म पद्म दुति तन रसाल |  

जय जय सुपास भव-पास-नाश, जयचन्द, चन्द-तन-दुति-प्रकाश ॥

जय पुष्प-दन्त दुति-दन्त-सेत, जय शीतल शीतल-गुन-निकेत |

जय श्रेयनाथ नुत-सहजभुज्ज, जय वासव-पूजित वासुपुज्ज ॥३ ॥

जय विमल विमल-पद-देनहार, जय जय अनन्त गुन-गन अपार |

जय धर्म धर्म शिवशर्म देत, जय शान्ति शान्ति-पुष्टी करेत ॥४ ॥

जय कुन्थु कुन्थु-आदिक रखेय, जय अरजिन वसु अरि छय करेय|

जय मल्लि मल्ल हत-मोहमल्ल,जय मुनिसुव्रत व्रतशल्य दल्ल ॥५ ॥

जय नमि नित वासव-नुत सपेम, जय नेमिनाथ वृष-चक्र-नेम |

जय पारसनाथ अनाथ-नाथ, जय वर्धमान शिव-नगर साथ ॥ ६ ॥

छन्द घत्तानन्द

चौबीस जिनन्दा, आनन्द-कन्दा, पाप-निकन्दा, सुखकारी |

तिन पद-जुग-चन्दा, उदय अमन्दा, वासव-वन्दा, हितकारी ॥

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्योऽनर्घपदप्राप्तये महार्घं निर्वपामिति स्वाहा

सोरठा - भुक्ति-मुक्ति-दातार, चौबीसों जिनराजवर |

        तिन पद मन वच धार, जो पूजै सो शिव लहै ॥

॥ इत्याशीर्वादः ॥

 

 

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