Home | About Us | Our Mission | Downloads | Contact Us |  
| Guest | Register Now
 
SERVICES
History of Jainism
Jain Ascetics
Jain Lectures
Jain Books/Litrature
24 Jain Tirthankars
Shalaka Purush
Jain Acharyas
Puja Sangrah
Vidhan
Jinvani Sangrah
Tithi Darpan
Jain Bhajan
Jain Video
Mother's 16 Dreams
Vidhan Mandal & Yantra
Wallpapers
Jain Manuscripts
Jain Symbols
Digamber Jain Teerths
Committee
Bidding
Virginia Jain Temple
 
DOWNLOADS
Books
Chaturmas List
Jain Calendar
Choughariya
Puja Paddhati
Subscribe For Newsletter
 
 
 
 
 
श्री सुमतिनाथ-जिन पूजा

श्रीसुमतिनाथ-जिनपूजा

संजम-रतन-विभूषन-भूषित, दूषन-वर्जितश्रीजिनचंद।

सुमति-रमा-रंजनभव-भंजन, संजयंत-तजिमेरु-नरिंद।।

मातु-मंगलासकलमंगला, नगरविनीताजयेअमंद।

सोप्रभुदया-सुधारसगर्भित, आयतिष्ठइतहरिदुःखदंद1

ॐह्रींश्रीसुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्रअवतरअवतरसंवौषट्आह्वाननम्।

ॐह्रींश्रीसुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्रतिष्ठतिष्ठठःठःसंस्थापनम्‌।

ॐह्रींश्रीसुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्रममसन्निहितोभवभववषट्‌सन्निधिकरणम्।

(छन्दकवित्ततथाकुसुमलता)

पंचम-उदधितनोंसमउज्जवल, जललीनोंवर-गंधमिलाय।

कनक-कटोरीमाँहिंधारिकरि, धारदेहुसुचिमन-वच-काय।।

हरि-हर-वंदितपाप-निकंदित, सुमतिनाथत्रिभुवनकेराय।

तुमपद-पद्मसद्म-शिवदायक, जजतमुदित-मनउदितसुभाय।।

ॐह्रींश्रीसुमतिनाथजिनेन्द्रायजन्म-जरा-मृत्युविनाशनायजलंनिर्वपामीतिस्वाहा।1।

मलयागिरघनसारघसौंवर, केशरअरकरपूरमिलाय।

भव-तप-हरनचरनपरवारों, जनम-जरा-मृततापपलाय।।हरि.।।

ॐह्रींश्रीसुमतिनाथजिनेन्द्रायभवातापविनाशनायचन्दनंनिर्वपामीतिस्वाहा।2।

शशि-समउज्जवलसहितगंधतल, दोनोंअनीशुद्धसुखदास।

सौलैअखय-संपदा-कारन, पुञ्जधरौंतुमचरननपास।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान्‌निर्वपामीति स्वाहा।3।

कमलकेतुकीबेलचमेली, करनाअरुगुलाबमहकाय।

सोलेसमर-शूलछय-कारन, जजौंरनअति-प्रीतिलगाय।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय काम-बाण विध्वंसाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।

नव्यगव्यपकवानबनाऊँ, सुरसदेखिदृग-मनललचाय।

सौलैछुधा-रोगछय-कारण, धरौंचरण-ढिंगमनहरषाय।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।

रतन-जड़ितअथवाघृत-पूरित, वाकपूरमय-जोतिजगाय।

दीपधरौंतुमचरननआगे, जातैंकेवलज्ञानलहाय।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विध्वंसनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।

अगरतगरकृष्णागरुचंदन, चूरिअगिनिमेंदेतजराय।

अष्ट-करमयेदुष्टजरतुहैं, धूमधूमयहतासुउड़ाय।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।

श्रीफलमातुलिंगवरदाड़िम, आमनिंबुफल-प्रासुकलाय।

मोक्ष-महाफलचाखन-कारन, पूजतहौंतुमरेजुगपाय।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।

जलचंदनतंदुलप्रसूनचरुदीपधूपफलसकलमिलाय।

नाचिराचिसिरनायसमरचौं, जय-जय-जय-जयजिनराय।।हरि.।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।9।

पंचकल्याणक-अर्घ्यावली

(रूपचौपाई)

संजयंततजिगरभपधारे, सावन-सेत-दुतियसुखकारे।

रहेअलिप्तमुकुरजिमिछाया, जजोंचरनजय-जयजिनराया।।

ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ल-द्वितीयादिने गर्भमंगल-प्राप्ताय श्री समतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।1।

चैत-सुकल-ग्यारसकहँजानों, जनमेंसुमतिसहितत्रय-ज्ञानों।

मानोंधरयोधरम-अवतारा, जजौंचरन-जुगअष्ट-प्रकारा।।

ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।

बैशाख-सुकल-नौमिभाखा, तादिनतप-धरिनिजरसचाखा।

पारनपद्म-सद्मपयकीनों, जजतचरनहमसमताभीनों।।

ॐ ह्रीं बैशाखशुक्ल-नवम्यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।3।

सुकल-चैत-एकादशहाने, घातिसकलजेजुगपतिजाने।

समवसरन-मँहकहिवृषसारं, जजहुँअनंत-चतुष्टयधारं।।

ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां ज्ञानसाम्राज्य-प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।

चैत-सुकल-ग्यारसनिरवानं, गिरि-समेदतैंत्रिभुवनमानं।

गुन-अनंतनिजनिरमलधारी, जजौंदेवसुधिलेहुहमारी।।

ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।

जयमाला

(दोहा)

सुमतितीनसौछत्तीसों, सुमति-भेददरसाय।

सुमतिदेहुविनतीकरों, सुमतिविलम्बकराय।।

दयाबेलितहँसुगुन-निधि, भविकमोद-गण-चंद।

सुमति-सतापतिसुनतिकों, ध्यावोंधरिआनंद।।

पंच-परावरतन-हरन, पंच-सुमतिसितदेन।

पंच-लब्धिदातारके, गुनगाऊँदिनरैन।।

(छन्दभुजंगप्रयात)

पितामेघराजा सबै सिद्ध काजा, जपै नाम जाकौ सबै दुःख भाजा।

महासूर इक्ष्वाकु वंशी विराजै, गुण-ग्राम जाको सबै ठौर छाजै।।

तिन्हों के महापुण्यसों आप जाये, तिहुँ लोक में जीव आनंद पाये।

सुनासीर ताही धरी मेरु धायो, क्रिया जन्म की सर्व कीनी यथा यो।।

बहुरि तात कों सौंपि संगीत कीनों, नमें हाथ जोरें भलो भक्ति भीनों।

बिताई दशै लाख ही पूर्व बालै, प्रजा लाख उन्तीस ही पूर्व पालै।।

कछु हेतुतैं भावना बार भाये, तहां ब्रह्म लौकांत के देव आये।

गये बोधि ताही समै इन्द्र आयो, धरे पालकी में सु उद्यान ल्यायो।।

नमैं सिद्ध को केशलोंचे सबै ही, धर्यो ध्यान शुद्ध जु घाती हने ही।

लह्यो केवलं औ समोसर्न साजं, गणाधीश जू एकसौ सोल राजं।।

खिरैं शब्द तामैं छहों द्रव्य धारे, गुनौ पर्जय उत्पाद व्यय ध्रौव्य सारे।

तथा कर्म आठों तनी थित्ति गाजं, मिलै जासु के नाशतैं मोच्छराजं।।

धरै मोहिनी सत्तरं कोड़कोड़ी, सरित्पत्प्रमाणं थिति दीर्घ जोड़ी।

अवधिज्ञान दृग्वेदनी अंतरायं, धरैं तीस कोड़ाकोड़ी सिंधुकायं।।

तथा नामगोतं कुड़ाकोड़ि बीसं, समुद्रप्रमाणं धरैं सत्तईसं।

सु तैंतीस अब्धि धरें आयु अब्धि, कहे सर्व कर्मोतनी वृद्ध लब्धि।।

जघन्य प्रकारैं धरैं भेद ये ही, मुहूर्त वसू नामगोतं गने ही।

तथा ज्ञान दृग्मोह प्रत्यूह आयं, सुअन्तर्मुहूर्तं धरैं थित्ति गायं।।

तथा वेदनी बारहे ही मुहूर्तं, धरैं थित्ति ऐसे भन्यो न्याय जुत्तं।

इन्हैं आदि तत्त्वार्थ भाख्यो अशेषा, लह्यो फेरि निर्वाण माहीं प्रवेशा।।

अनन्तं महन्तं सुसन्तं सुतन्तं, अमन्दं अफन्दं अनन्दं अभन्तं।

अलक्षं विलक्षं सुलक्षं सुदक्षं, अनक्षं अवक्षं अभक्षं अतक्षं।।

अवर्णं अघर्णं अमर्णं अकर्णं, अभर्णं अतर्णं अशर्णं सुशर्णं।

अनेकं सदेकं चिदेकं विवेकं, अखण्डं सुमण्डं प्रचण्डं तदेकं।।

सुपर्मं सुधर्मं सुशर्मं अकर्मं, अनन्तं गुनाराम जैवन्त धर्मं।

नमैं दास ‘वृंदावन’ शर्न आई, सबै दुःखतैं मोहि लीजै छुड़ाई।।

ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

तुव सुगुन अनन्ता, ध्यावत संता, भ्रमतम भंजन मार्तंडा।

सतमतकर चंडा भविकज मंडा, कुमति कुवलइन गन हंडा।।

।।इत्याशीर्वादः शांतये त्रय शांतिधारा।।

।।पुष्पांजलि क्षिपामि।।

OUR SERVICES