श्री महावीर चालीसा शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करों प्रणाम | उपाध्याय आचार्य का, ले गुणकारी नाम ॥ सर्वसाधु वा सरस्वती, जिनमन्दिर सुखकार | महावीर भगवान को, मनमन्दिर में धार ॥ जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी | वर्धमान है मान तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा | शान्त छवि मनमोहिनी मूरत, शान्त हंसीली सोहनी सूरत | तुमने वेष दिगम्बर धारा, कर्म शत्रु भी तुमसे हारा | क्रोध मान वा लोभ भगाया, माया ने तुमसे डर खाया | तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनियॉं से क्या नाता | तुझमें नहीं राग वा द्वेष, वीतराग तू हित-उपदेश | तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा बच्चा | भूत प्रेत तुमसे भय खावें, व्यन्तर राक्षस सब भग जावें | महाव्याधि मारी न सतावे, अतिविकराल काल डर खावे | काला नाग होय ङ्गन धारी, या हो शेर भयंकर भारी | ना हो कोई बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला | अगिन दवानल सुलग रही हो, तेज हवा से भड़क रही हो | नाम तुम्हारा सब दुख खोवे, आग एकदम ठण्डी होवे | हिंसामय था भारत सारा, तब तुमने लीना अवतारा | जन्म लिया कुण्डलपुर नगरी, हुई सुखी तब जनता सगरी | सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे, त्रिशला की आँखों के तारे | छोड़ सभी झंझट संसारी, स्वामी हुए बाल ब्रह्मचारी | पंचम काल महा दुखदाई, चांदनपुर महिमा दिखलाई | टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध झराया | सोच हुआ मन में ग्वाले के, पहुंचा एक ङ्गावड़ा ले के | सारा टीला खोद गिराया, तब तुमने दर्शन दिखलाया | जोधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा जब तेरा | ठण्डा हुआ तोप का गोला, तब सबने जयकारा बोला | मन्त्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी दरब लगाया | बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुमको लाने की ठहराई | तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी, पहिया खसका नहीं अगाड़ी | ग्वाले ने जब हाथ लगाया, ङ्गिर तो रथ चलता ही पाया | पहिले दिन वैशाख वदी के, रथ जाता है तीर नदी के | मीना गूजर सब ही आते, नाच-कूद सब चित उमगाते | स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का तुम मान बढ़ाया | हाथ लगे ग्वाले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही | मेरी है टूटी सी नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया | मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर | तुमसे और कछु नहिं चाहूँ, जन्म जन्म तव दर्शन पाऊँ | चालीसे को चन्द्र बनाये, वीर प्रभु को शीश नमावे | नित ही चालिस बार पाठ करे चालीस दिन | खेवे धूप अपार, वर्धमान जिन सामने | होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो | जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले ॥ |