एक तेरी चित्काय है प्यारेए बाकी सब संसार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार।। ना कोई सा रूप है तेराए ना कोई आकार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।1।। भटका घूमा घूमा भटकाए गतियां चारों चार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।2।। त्रस स्थावर शरीर अनंताए पाया बारंबार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।। 3।। पाप पुण्य से दो भव मेंए हुआ वैक्रिय.धार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।4।। कूट प्रपंच मिथ्या कारणए जल से नभ विहार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।5।। सिद्ध शिला से वनस्पतिए आया जीव निहार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।6।। कुछ काल शुभ कारण सेए पाया यह साकार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।7।। मात पिता सुत दारा पायेए हर भव में हर बार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।8।। सोना देखा चांदी देखीए औ देखा व्योपार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।9।। मूरख नंगा भी रहाए पाया नहीं आहार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।10।। जप तप स्वाध्याय कियेए नित नित दिन वार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।11।। मंदिर पूजा साधु.दानए कर कर के तू हार । एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।12।। विद्या पायी बना साधुए पाला शुद्ध आचार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।13।। पहुंचा नव ग्रैवेयक तकए फिर भी रहा उतार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।14।। जनम काल से मरण तकए पाया दुःख अपार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।15।। राग द्वेष का पहरा मन मेंए ठहरा पांचों द्वार। एक तेरी चित्काय रे प्यारेए बाकी सब संसार।।16।। मूल बात एक ही हैए निश्चय या व्योहार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार।।17।। मन इन्द्रिय बंद करए उपयोग अंदर डार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार।।18।। दैनंदिन अभ्यास सेएस्वसन्मुखता धार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार।।19।। निज परमातम वंदन हीए है धरम का सार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार।।20।। भव भव के भ्रमण सेएपाओ अब तो पार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार।।21।। दिलीप पर चिरकाल रहाए अब अचिर करो संसार। एक तेरी चित्काय है बंदेए बाकी सब संसार॥22।। फल मिलेगा क्या तू जानेए मुक्ति का विस्तार। ज्ञान दर्शन युगपतपनाए जहाँ लगातारण्ण्ण्ण्ण् ण्ण्ण्ण्ण् ज्ञान दर्शन युगपतपना जहाँ लगातार॥23॥ एक मेरी चित्काय ही है इन सबका आधार। एक मेरी चित्काय ही है तब सारों का सार॥24॥ |